बीजेपी का ये कैसा दोहरा चरित्र है कि एक ओर लाकडाउन का समर्थन वहीं दूसरी ओर लाकडाउन के विरोध में कटोरा लेकर भीख मांगी जाती है?

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रिपोर्टर:-

इस तस्वीर को देखिये ये है सतारा से भाजपा के राज्यसभा सांसद उदयन राज भोसले इन्होने सतारा (महाराष्ट्र) में लाकडाउन का विरोध करने का अनूठा तरीका निकाला।
ये महाशय हाथ में कटोरा लेकर भीख मांगने निकले और मजे की बात यह रही कि सांसद महोदय ने ४५० रुपए भींख मांग कर जमा भी कर लिये और इन पैसों को कलेक्टर ऑफिस में जमा करवाया। सांसद महोदय का कहना है कि लाकडाउन के कारण भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है और व्यापारियों का काफी नुकसान भी होगा।

महाराष्ट्र सरकार को जल्द से जल्द इस पर विचार करना चाहिए।
अब यहां विचार करने वाली बात यह है कि भाजपाईयों को विपक्ष में रहकर ही जनता की चिंता क्यो होती है?
वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश की बात करे तो यहां भाजपा सत्ता में है चुनाव से लेकर तमाम मामले निपटाने के बाद कोरोना की याद आयी।

सायरन भी बजा दिया, भीड़ लगाकर गोले बनाना भी सिखा दिये, राजनीतिक रैलियां भी कर ली, बैठके भी हो गई और सबकुछ हो जाने के बाद अब आखरी विकल्प लाकडाउन ही दिखाई दिया।
चुनावी क्षेत्र दमोह को छोड़कर लाकडाउन का ऐलान भी मध्यप्रदेश में कर दिया।
महाराष्ट्र में भाजपा कह रही है कि व्यापारी नुकसान में है, परेशान है।
इन्हें पहले आर्थिक मदद घोषित करो फिर लाकडाउन लगाओ वहीं मध्यप्रदेश के व्यापारी यहां तक कह रहे है कि महाराष्ट्र में भाजपाई विपक्ष में रहकर हमारे लिए नोटंकी कर लड़ने खड़े हो जाते है।
यहां मध्यप्रदेश में हम लोगों की स्थिति बाढ़ में बहकर आये जैसी हो गई है.?

यहां की सत्तासीन शिवराज सरकार हमें अनदेखा कर रही हैं।
इसे दोहरा चरित्र ही कहा जाएगा कि जहां आप सत्ता में हो वहां आप जनता की परेशानियों को समझ नहीं रहे हो और जहां आप विपक्ष में हो वहां आप कटोरा हाथ में लेकर विरोध कर रहे हो।
पिछले एक साल से मध्यमवर्गी परिवार, छोटे व्यापारी, फेरीवाले अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
कोरोना में जहां किसी ने अपना परिवार खोया तो किसी ने अस्पतालों में अपनी जीवनभर की कमाई गंवा दी।
उसके बाद अब फिर से लाकडाउन का सामना करना कैसा संभव होगा यह कहना काफी मुश्किल है।

मध्यप्रदेश में कुछ माह पूर्व प्रमुख शहरों में संक्रमण दर कम हो गई थी तब प्रशासन चेन से सो रहा था अगर उसी समय थोड़ी अवेयरनेस रखी होती तो यह स्थिति नहीं बनती।
आज स्थिति काफी खराब है लोग बिमारी से भय में भी है और लाकडाउन के कारण आर्थिक तंगी भी झेल रहे हैं।
अस्पतालों ने कमाई में सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं कोविड के इलाज के लिए अब पैकेज सिस्टम बना लिया है दस से पच्चीस हजार प्रतिदिन के हिसाब से लूटा जा रहा है।

वहीं सत्तासीन केवल भाषणबाजी और रेलियों में व्यस्त है।
वे अपने एसी कमरों में बैठके लेकर अपने उलजुलूल निर्णय जनता पर थोप देते हैं। जिसे दबी कूचली जनता भी मानने को मजबूर है।
देश के प्रधान सेवक टीकोत्सव मनाने की बात कह रहे हैं जबकि देश में कई जगह टीके ही खत्म हो गये हैं।
और कोरोना भी कमाल कर रहा है जहां चुनाव है वहां बिमारी है ही नहीं।
वहां बेधड़क रेलियां निकाली जा रही है. सोशल डिस्टेंसिंग का तो सवाल ही नहीं।

लेकिन जहां चुनाव खत्म वहां कोरोना फिर जिंदा हो रहा है।
इसे हास्यासपद न कहें तो फिर क्या कहें कि सालभर हो गया कोरोना संक्रमण को हमने थाली और ताली बजाली, और मोमबत्ती भी जला ली।

सबकुछ कर लिया लेकिन बिमारी उससे भी ज्यादा तेज गति से बढ़ रही है!
इस एक साल में कोई ठोस प्रबंध नहीं किये गये केवल भाषणबाजी कर लोगों को बेवकूफ बनाया गया।
अब देखना है कि पहले से मरी हुई जनता जिंदा कब होती है?

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