ऐसा भी वक्त था जब कोई मनुष्य उस पानी को पिए बिना भोजन नहीं कर सकता था ! ओह कौनसा पानी होगा?

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रिपोर्टर:-

डॉ अम्बेडकर वोल्युम 1 एक समय ऐसा था जब शासित वर्ग का कोई मनुष्य उस पानी को पिये बिना भोजन नही कर सकता था , जिस पानी से ब्राह्मण के पैर का अँगूठा न धोया गया हो।
सर पी.सी. रे ने अपने बचपन की बात लिखी है कि कलकत्ता की सड़कों पर प्रातः काल शासित जातियों के बच्चे पात्रों में पानी लिये ब्राह्मण के पैर धोने के लिये घण्टों प्रतीक्षा किया करते थे .
वे पैर धोकर यह पानी अपने माता पिता को देते थे ,
जो भोजन के लिए उनकी प्रतीक्षा करते रहते थे।

ब्राह्मण प्रथम फल प्राप्त करने का सही अधिकारी था।
मालाबार में जहां संबंध विवाह प्रथा प्रचलित थी वहां शासित जातियां जैसे नायर अपनी कन्याओं को ब्राह्मण द्वारा रखैल बनाये जाने को अपनी इज्जत समझते थे ।.
यहां तक कि राजा भी अपनी रानियों का कौमार्य भंग करने के लिये ब्राह्मण को निमंत्रण देते थे।
(बाबा साहेब आंबेडकर)
साथियो, आज जब, इस तरह से मिलते-जुलते ब्राह्मणवादी कानून या परंपरा, जो लिखित दस्तावेज है, प्रमाण है,
फिर भी जब हम किसी से कहते हैं।

या लिखते हैं तो, आज कोई मानने को तैयार नही होता है ।
उल्टा हमे ही कह दिया जाता है कि तुम हिन्दू धर्म विरोधी है,
यदि हिम्मत है तो मुस्लिम धर्म के बारे मे बुराई करके दिखाओ!
आज शिक्षा और संविधान से परिवर्तन आया है, बदलाव थोड़ा बहुत हो भी रहा हैै ।
तथा ऐसी घिनौनी परम्पराएं आज नहीं हो रही हैं तो, हम मानने को तैयार नही है।
साथियो यकीन मानिए तथा अपनी आंखों से धर्म का चश्मा उतारिए, ब्राह्मण को अपने से उच्च होने की मानसिकता से,
अपने आप को बाहर निकालिए, तभी आप सही आकलन कर सकते हैं।

आज भी पैदा होने से मरने तक जितने भी ब्राह्मणी धर्म कर्म कान्ड है,
जैसे- पंडित जी पांव लागी बोलना, पैदा होते बच्चे को अपसगुन समय बताकर मूर या मंगलिक करार कर देना,
कुंडली और नामकरण पंडितों से करवाना, सगुन अपसगुन पूछ्ना,
पंडितों से शादी करवाना और मृत्यु के बाद, आत्मा को पानी पिलाना,
मुंडन कर्मकांड, मृत्यु भोज और फिर अंत में पिंड दान करवाना आदि, ए सभी घिनौनी,
असंवैधानिक, पाखंडी और मानवता के लिए कलंकित परंपराएं चली आ रही हैैं।
इनसे सलाह मशविरा लेना और उस पर अमल करना आप के लिए नुकसानदायक है,
क्यों कि इनकी बौद्धिक सोच ऊंच नींच की भावना से ग्रसित, स्वार्थी और अमानवीय होती है।

अभी दो सप्ताह पहले हमारे चिर परिचित की मौत होने पर पंडित जी ने डेडबाडी को गंगा में जल प्रवाह करवा दिया
पता नहीं किस हालत में किनारे पड़ी होगी?
और अब उसी की आत्मा को पानी पिलाना, मुंडन, पूरे खानदान को घाट नहलाना, दसवां कर्मकांड, तेरही फिर मृत्यु भोज कराते हुए, अंत में बोधगया में पिंडदान करवाया जाएगा।
बिरोध तो मैंने किया, लेकिन अफसोस, परंपरा के नाम पर बिरोध को दबा दिया जाता है।

मेरा आप सभी शूद्र साथियों से अनुरोध और सुझाव भी है कि,
इनसे और इनके विचारो से जितना जल्दी छुटकारा पा लेंगे,
उतना ही जल्दी आप को ब्राह्मणवादी मानसिकता से मुक्ति मिल जाएगी और जीवन खुशहाल हो जाएगा। धन्यवाद!
आप के समान दर्द का हमदर्द साथी!
मिशन की विशेष जानकारी हेतु आप नाम और मिशन दोनों, गूगल या यूट्यूब पर सर्च कर सकते हैं।
गर्व से कहो हम शूद्र हैं।

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