आज शेर शाह सूरी की बरसी है, अमूमन हम किसी की बरसी पर उनकी अच्छाइयों को याद करते है !

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रिपोर्टर:-

शेर शाह सूरी ने सिर्फ़ पाँच साल, पाँच दिन राज किया था,
इस बीच वो 31 महीने युद्ध की वजह से राजधानी दिल्ली से दूर रहे थे।
इसके बाद भी, उन्होंने सिर्फ़ 5 सालों में जो कर दिखाया, वो आज भी किसी रिकॉर्ड से कम नहीं है।
उन्होंने, पूरे राज्य में ज़मीन के सर्वे और मपाई का सिस्टम शुरू किया।
खेती की ज़मीन को नापने के लिए 39 इंच के लोहे की छड़ का स्टैंडर्ड तय किया, जिसे गज़ कहा गया।

सिकंदर गज़ नाम की इस छड़ का सिस्टम आज तक इस्तेमाल होता है। ज़मीन की ख़रीद बिक्री के लिए पट्टा सिस्टम लागू किया।
उनकी डाक व्यवस्था आज भी मिसाल है।
उन्होंने, रुपया का सिस्टम शुरू किया, जो 178 रत्ती, चाँदी का सिक्का था।
एक रुपया 64 दाम का था। इसी दाम को बाद में ‘आना’ कहा गया,
भारत मे रुपया शेर शाह सूरी की देन है।
राज्य में, 47 जिले बनाए, जिन्हें सरकार कहा जाता था।
हर जिले यानि सरकार में एक फ़ौजी अफ़सर (शिक़दर-ए-शिक़दरान) और एक सिविल अफ़सर (मुंसिफ़) नियुक्त किया। ये आज की SP और DM की प्रणाली की तरह है।

हर जिले या सरकार में रेवेन्यू अदालतें बनायी, जिसमें मुंसिफ़ आज के DM, रेवेन्यू केस में जज की भूमिका में होते थे।
हर जिले या सरकार में फ़ौजदारी अदालतें भी बनायी, जिसमें शिक़दर आज के SP क्रिमिनल केस में जज की भूमिका में होते थे।
शासन की कैबिनेट व्यवस्था बनायी, जिसमें वित्त मंत्री (दीवान-ए-वजीरत) रक्षा मंत्री (दीवान-ए-अर्ज़) विदेश मंत्री (दीवान-ए-रसालत) संचार मंत्री (दीवान-ए-इंशा) बनाए गए थे।
लेकिन सारे फ़ैसले ख़ुद शेर शाह के स्तर पर एप्रूव होते थे।
किसानों के लिए क़र्ज़ (तक़ावी) की व्यवस्था शुरू की, ताकि किसान अच्छी फसल उगा सके।

व्यापार में दो टैक्स व्यवस्था बनायी- एक टैक्स राज्य में समान के प्रवेश पर और एक दुकान पर समान की बिक्री पर।
यानी आज का कस्टम टैक्स और जीएसटी, बाक़ी सभी टैक्स को उन्होंने ख़त्म कर दिया।
फ़ौज का नया सिस्टम बनाया, जिसमें फ़ौजियों के विस्तृत रेकार्ड, घोड़ों को दाग़ कर निशानदेही की व्यवस्था,
उनकी भर्ती और यूनिट की व्यवस्था शुरू की। यही सिस्टम बाद में मनसबदारी में विकसित हुआ, जो बाद के रेजिमेंट सिस्टम की तरह था।

आगरा से जोधपुर, आगरा से बुरहानपुर, लाहौर से मुलतान के हाइवे बनवाए। GT रोड बनवायी,
जो पेशावर से सोनारगाँव, बांग्लादेश तक 3000 किमी लम्बी थी,
उन रास्तों पर 1700 सरायें बनायीं (आज का मुग़लसराय उन्ही सराय में से एक है) राजगीरों की हिफाज़त की जवाबदेही गाँव के मुखिया और लोगों की तय की।

अगर यात्री के साथ लूटपाट हो जाती, उनपर हुक़्म था,
तब गाँव के लोग या तो अपराधी को पेश करें या फिर,
मिल कर यात्री के आर्थिक नुक़सान की भर पायी करें।
क़त्ल के केस में अगर गाँव के बड़े क़ातिल नहीं ढूँढ सके, तो सज़ा मुखिया को मिलती थी।
इसी वजह से सफ़र करना काफ़ी महफूज़ हो गया था।
कई इतिहासकार लिखते है शेरशाह की हुकूमत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक नौजवान लड़की अपने पूरे जेवरात पहनकर आकेली जा सकती थी !

दिल्ली का पुराना क़िला, रोहतासगढ़ क़िला,पंजाब में तमाम किले और सराय,पूरे देश मे और कई बिल्डिंग बनवायीं।
शाही फौज के गुजरने पर जो नुकसान किसानों का होता था मौके पर ही भुगतान होता था !
जो लोग कहते हैं 5साल मे क्या होता उनके लिए 5साल की शेर शाह सूरी और 10साल की हज़रत उमर रजिल्लाहू की हुकूमत करने का निजाम इतिहास मे पढ़ लो कायराना अल्फ़ाज़ बोलना बंद कर दोगे।
काम का जज़्बा हो तो 5 साल 10साल की हुकूमत भी काफी है, बहूत होती हैं ।
काश कोई ले आता आज भी ऐसा निज़ाम !!

 

 

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