शिक्षकों व छात्रों के साथ अभिभावकों का भी बढ़ा टेंशन? ऑन लाइन शिक्षा पाना क्यों है मुश्किल ? जाने !

रिपोर्टर:-
अब तक पढ़ाई का मतलब होता था कि उसे स्कूल में दाखिला लेना है।
पूरे साल उपस्थिति हाजिरी लगानी है, परीक्षा देनी है. परीक्षा में पास होने के बाद वह अगली क्लास में जाता था।
हर बच्चा स्कूल में आए व पढ़े इसके में लिए शिक्षा का अनिवार्य किया गया।
मेधावी छात्र महंगी स्कूल में पढ़ सके, इसके लिए राइट टू एजुकेशन के तहत ट्यूशन फीस भुगतान की जिम्मेदारी सरकार ने अपने कंधे पर ली,
किंतु कोरोना ने शिक्षा की धारणा को ही बदल दिया. इसमें पिछले डेढ़ साल से बच्चे स्कूल से दूर है।
शिक्षक के दर्शन मोबाइल, टैबलेट या लैपटॉप में होते हैं. वहीं से ज्ञान लेना होता है.
मोबाइल, लैपटॉप का कैमरा शुरू कर परीक्षाएं देनी पड़ती हैं. प्रोजेक्ट भी घर में बैठ कर सबमिट करने पड़ते है.
यहां तक की नृत्य स्पर्धा, गायन स्पर्धा और अन्य स्पर्धाएं भी अब आनलाइन तरीके से ली जा रही हैं. अब जब शिक्षा का तौर तरीका ही बदल गया है।
सरकार को निश्चित रूप से उन बच्चों के बारे में चिंतन करना चाहिए, जो मोबाइल या टैबलेट का प्रबंध नहीं कर सकते।
कई बच्चों के पास स्मार्ट फोन नही
एक अध्ययन में पता चला है कि महाराष्ट्र में 70 फीसदी बच्चों के पास में मोबाइल या टैबलेट नहीं है।
जिले समेत अन्य शहर की झोपड़पट्टी इलाके में शहर से सटे गांवों में मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करता दूर दराज के गांवों में तो स्थिति और भी बिकट और भयानक है।
नेटवर्क के बिना बच्चे ऑनलाइन मोबाइल पर पढ़ाई कैसे क्या कर सकते है?
गांवों में ज्यादा तर गरीब लोग रहते है।उनके पास बच्चों के लिए एंड्रॉयड फोन और लेफटॉप खरीद ना भी मुश्किल है।
इसके अलावा मोबाइल कंपनियों के 1 महीने के डेटा पैक की कीमत किसी भी निम्न मध्यमवर्ग एवं गरीबों के बस में नहीं है।
ग्रामीण क्षेत्र में स्कूलों की स्थिति में सुधार के लिए उन्हें कई कदम उठाने हैं, बच्चों की उपस्थिति नहीं रहती तो हर दिन शिक्षकों के साथ रूबरू होने की वजह से बच्चों का प्रगति पर ध्यान देना संभव होता था, लेकिन अब वह हालात नहीं रहे है।
ईमानदारी से चिंतन करना जरूरी है. हर बच्चा आनलाइन शिक्षा ले सके, जिस की जिम्मेदारी पूरी तरह से सरकार की है।
केंद्र व राज्य इसमें मिल-जुलकर काम करना चाहिए.पीरियड की तैयारी में उसे 2-3 घंटे देना पड़ता है।
उसमें भी मोबाइल में रैम की स्पीड डेटा की स्पीड पर निर्भर है कि उसका पीरियड सही तरीके से विद्यार्थी देख पा रहे हैं।
मोबाइल में रिचार्ज के लिए नहीं रहते पैसे !
अगर सस्ता मोबाइल भी खरीद लिया तब भी डेटा पैक रिचार्ज महंगा लगता है, जिस घर में 1 से ज्यादा बच्चे हैं।
हर बच्चे के लिए मोबाइल या टैबलेट का प्रबंध कैसे संभव हो सकता है? इस बारे में सरकार को अवश्य रूप से सोचना चाहिए।
विडंबना इस बात की है कि शिक्षा क्षेत्र के जानकार एवं जनता के प्रतिनिधियों ने भी इस बात की ओर कोई ध्यान नहीं दिया है।
स्कूल व अभिभावकों के लिए आनलाइन शिक्षा मजबूरी है, क्योंकि इस सिस्टम में शिक्षक को लगातार बोलते जाना है. पूरे पीरियड में पल मर की भी फुरसत नहीं होती है।
45 मिनट के आनलाइन पीरियड की तैयारी के लिए शिक्षक को पीपीटी यानि पावरपाइंट प्रेजेंटेशन बनाना है. पूरी तैयारी करना है।