OBC आरक्षण पर उनके सख्त तेवर, अब अदालत को भी देगी ऊपरी अदालत में चुनौती
संवाददाता
OBC आरक्षण पर ममता बनर्जी के सख्त तेवर
ममता बनर्जी का कहना है कि पश्चिम बंगाल में ओबीसी आरक्षण जारी रहेगा, क्योंकि इससे संबंधित विधेयक संविधान की रूपरेखा के
भीतर पारित किया गया था।
ममता बनर्जी ने कहा सरकार ने घर-घर सर्वेक्षण करने के बाद विधेयक बनाया था और उसे मंत्रिमंडल और विधानसभा ने पारित किया था। जरूरत पड़ने पर वह इस आदेश के खिलाफ ऊपरी अदालत तक जाएंगी।
OBC आरक्षण रोके जाने का आरोप भी बीजेपी पर
सीएम ममता बनर्जी ने आरक्षण रोके जाने का आरोप भी बीजेपी पर मढ़ दिया। उन्होंने कहा कि बीजेपी केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल कर ओबीसी आरक्षण को रोकने की साजिश कर रही है। उन्होंने कहा, “कुछ लोग ओबीसी के हितों पर कुठाराघात करने के लिए अदालत गए और उन्होंने याचिकाएं दायर कीं, तब यह घटनाक्रम सामने आया है।
बीजेपी इतना दुस्साहस कैसे दिखा सकती है?
इसके साथ ही दीदी ने बीजेपी से सवाल किया कि क्या सरकार उसके द्वारा चलायी जाएगी या फिर अदालत के? ममता बनर्जी का आरोप है कि संदेशखाली में अपनी साजिश में विफल हो जाने के बाद अब बीजेपी नयी साजिश रच रही है।
क्या है OBC आरक्षण रद्द करने का मामला?
कलकत्ता हाई कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में कई वर्गों को दिया गया ओबीसी का दर्जा रद्द कर दिया। साथ साल 2010 के बाद जारी सभी ओबीसी प्रमाण पत्रों को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि राज्य में सेवाओं और पदों में रिक्तियों में 2012 के एक अधिनियम के तहत ऐसा आरक्षण गैरकानूनी है।
हाई कोर्ट ने अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आदेश पारित करते हुए स्पष्ट किया कि जिन वर्गों का ओबीसी दर्जा हटाया गया है, उसके सदस्य अगर पहले से ही सेवा में हैं या आरक्षण का लाभ ले चुके हैं या राज्य की किसी चयन प्रक्रिया में सफल हो चुके हैं, तो उनकी सेवाएं इस फैसले से प्रभावित नहीं होंगी।
OBC सर्टिफिकेट पर अदालत ने क्या कहा?
अदालत के इस फैसले से उन लोगों को बड़ी राहत मिली है जो ओबीसी सर्टिफिकेट के आधार पर आरक्षण पाकर नौकरी कर रहे हैं। हाई कोर्ट की बेंच ने कहा कि राजनीतिक उद्देश्य के लिए मुस्लिमों के कुछ वर्गों को ओबीसी आरक्षण दिया गया। यह लोकतंत्र और पूरे समुदाय का अपमान है।
अदालत ने अपनी टिप्पणी ने ये भी कहा कि इन समुदायों को आयोग ने जल्दबाजी में इसलिए ओबीसी आरक्षण दिया, क्यों कि ये सीएम ममता बनर्जी का चुनावी वादा था. सत्ता में लौटते ही इस वादे को पूरा करने के लिए असंवैधानिक तरीके से आयोग ने आरक्षण की रेबड़ियां बांटीं।