SC के सीनियर वकील ने ऐसा क्यों कहा कि इंसाफ करने में नाकाम न्याय प्रणाली से क्या फायदा?
न्यू दिल्ली
विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील दुष्यंत दवे ने कहा: न्याय देने मे विफल न्याय प्रणाली से क्या फायदा..?
दुष्यंत दवे ने कहा, ” अगर एक कामगार अपने वेतन के लिए 20 साल तक लड़ता रहे तो क्या फायदा..?
बताते चलें कि आज अंडर ट्रायल कैदी जेल में हैं। हम जानते हैं कि हमारी कानून व्यवस्था कैसी है। हम जानते हैं कि हमारी पुलिस कैसे लोगों को गिरफ्तार करती है।
आज पांच लाख विचाराधीन कैदी जेल में पड़े हैं बेचारे। कब उनकी सुनवाई होगी।
ऐसे में गरीब, अल्पसंख्यक, लोगों को बेल नहीं दिया जा रहा है। बुद्धिजीवीयों की आवाज को दबाया जा रहा है
विपक्ष के किसी नेता को पकड़कर अंदर डाल दिया जा रहा है.
और सुप्रीम कोर्ट कह रही है कि हम आपको बेल नहीं देंगे। जबकि बेल तो सबका हक है। सुप्रीम कोर्ट ने खुद कहा है “Bail Is Right, Jail Is Exception” (बेल अधिकार है, जेल भेजना अपवाद)।
बहुत से ऐसे जज हैं जो प्रो-प्रॉसिक्यूशन हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये पहले सरकारी वकील रहे हैं। ये सरकार की ही मानते हैं। कभी किसी इंसान को निर्दोष समझते ही नहीं हैं। पुलिस जिसको लाया उसे दोषी मान लेते हैं।
गौर तलब हो कि प्रिजनर्स स्टैटिस्टिक्स इंडिया 2022′ के मुताबिक, भारतीय जेलों में 573,220 कैदी हैं, इनमें से अधिकांश (चार में से तीन से अधिक) विचाराधीन कैदी हैं। ज्यादातर (तीन में से दो) विचाराधीन कैदी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों सहित उत्पीड़ित जाति समूहों से संबंधित हैं।
2022 में विचाराधीन कैदियों का लगभग पांचवां (21%) दलितों का था।
अंडर ट्रायल कैदियों में से 9% अनुसूचित जनजाति और 35% अन्य पिछड़ा वर्ग से थे।
इसी तरह जेल के विचाराधीन कैदियों में मुसलमानों की हिस्सेदारी 19.3% है।
अभी अभी वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि भारत के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि एक जाँच करने वाली संस्था ( ED) ने लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचलते हुए एक चुने हुए मुख्यमंत्री को अरेस्ट कर लिया जो कि कानून के विरुद्ध है।
कपिल सिब्बल ने नत्मस्तक हो चुके शीर्ष न्यायालय से पूछा कि क्या कोई गाइडलाइन है कि किस केस कि सुनवाई सुप्रीम कोर्ट सुनेगा?
उन्होंने कहा कि आर्टिकल 32 के तहत हर नागरिक का अधिकार है कि सुप्रीम कोर्ट मे न्याय के लिए जा सकता है, किन्तु आश्चर्य है कि हेमन्त सोरेन जी के केस को सुनवाई करने से मना कर दिया गया, जबकि यह चुने हुए मुख्यमंत्री का केस था, इसके उलट सरकार से सम्बन्धित छोटे मोटे केस की सुनवाई यही सुप्रीम कोर्ट कर लेता है।
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि विगत छ: सात वर्षों से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों की निष्ठा संदिग्ध रही है, जिसकी जानकारी देश दुनिया को तब हुई थी जब चार जजों ने मीडिया मे आकर सवाल उठाये थे यह भारतीय न्यायालय के इतिहास में पहली बार हुआ था।
प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार से सम्बन्धित सारे सेंसिटिव जजमेंट सरकार के पक्ष में ही दिये जा रहे हैं। लोगों मे यह आम चर्चा हो रही है कि तुषार मेहता सरकार के तरफ से जो भी बोलते है, जज वही करते हैं!
नागरिक अधिकारों , न्याय एवं संविधान की रक्षा के लिए हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने सुप्रीम कोर्ट को स्वतन्त्र रखा था, फिर भी आज यह सरकार के प्रति नत्मस्तक है, ऐसे में अब न्याय की उम्मीद और गुहार किससे.?
संवाद
विश्वजीत सिंह
पिनाकी मोरे