अब आखरी चरण का चुनाव बाकी है,साबित होगा वो भी खतरे की घंटी,बदल देगा हवा का रुख
इस बार के लोक सभा चुनाव को देखते
अबतक 6 चरणों के चुनावी नतीजे साफ तौर से बता चुके है कि अब लहर किसकी है,कौन होगा देश का प्रधान मंत्री। किस पार्टी की सत्ता राज करने जा रही है।
हवा का रुख
चुनाव की घोषणा के पश्चात जिस तरह नरेंद्र मोदी ने मुसलमानों को गालियां देने वाले अपने तमाम सांसदों के टिकट काटे उससे यह संकेत मिला कि इस चुनाव को नरेंद्र मोदी सांप्रदायिकता से मुक्त करेंगे।
प्रज्ञा ठाकुर, रमेश विधुड़ी, परवेश वर्मा , अनंत कुमार हेगड़े, प्रताप सिम्हा और नलिन कुमार कतील जैसे सांसद जिनकी राजनीति ही मुसलमानों को गालियां देने, उनका सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार करने पर टिकी थी , नरेंद्र मोदी ने सबका टिकट काट कर उन्हें पैदल कर दिया।
यह नरेंद्र मोदी के आत्मविश्वास को दिखा रहा था , और इन्हीं सब फैसलों से लगा कि नरेंद्र मोदी इस चुनाव में निश्चित रूप से जीतेंगे और 400 पार का नारा सच होने लगा था।
इस वातावरण में लगा कि नरेंद्र मोदी इस चुनाव में अपने 10 साल के कार्यकाल की उपलब्धियों पर वोट मांगेंगे , उच्चतम मानक स्थापित करेंगे और जीतेंगे।
ऐसा पहले चरण तक हुआ भी , मगर पहले चरण में नरेंद्र मोदी को जाने क्या फीडबैक मिला कि वह इस चुनाव में वही काम करने लगे जो प्रज्ञा ठाकुर, रमेश विधुड़ी, परवेश वर्मा , अनंत कुमार हेगड़े, प्रताप सिम्हा और नलिन कुमार कतील करते रहें हैं।
नरेंद्र मोदी छठवें चरण के चुनाव के बाद उनके स्तर से भी नीचे उतर आए। तो सवाल यह है कि नरेंद्र मोदी को यही सब जब करना था तो उनको भी टिकट दे देते।
दरअसल पहले चरण के बाद नरेंद्र मोदी को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी क्योंकि उनका जातियों वाला सारा समीकरण टूटेगा इसका एहसास हो गया , जाट , यादव , कुर्मी , दलित, गुर्जर वाला भाजपा में गया वोट दरक रहा इसका नरेंद्र मोदी को फीडबैक मिल गया।
दरअसल भाजपा और मोशा ने भाजपा के पक्ष में जो जातिगत समीकरण बना कर लगातार चुनाव जीतते रहे हैं वह अब दरक रहा है और इस चुनाव में निश्चित रूप से ना 100% परंतु एक बड़ा हिस्सा भाजपा से छिटक कर इंडिया गठबंधन की तरफ़ आ चुका है।
उदाहरण के तौर पर देखें तो जो यादव वोट पिछले कुछ चुनाव में कुछ प्रतिशत टूट कर भगवा हो गया था वह इस चुनाव में ना सिर्फ वापस इंडिया गठबंधन की तरफ़ आया बल्कि वह ज़मीन पर लड़ता दिखाई दे रहा है। वहीं इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के भाजपा के सबसे बड़े ओबीसी चेहरे केशव प्रसाद मौर्य का चुनावी परिदृश्य से गायब रहना भी एक संकेत देता है।
इसी तरह संविधान बचाने की लहर के बीच तमाम जिस तरह दलित और ओबीसी जातियां इंडिया गठबंधन की तरफ़ आ खड़ी हुई वह प्रधानमंत्री के लिए अपनी रणनीति बदलने के लिए काफ़ी था।
और फिर नरेंद्र मोदी मुसलमानों पर ऊल-जलूल आक्रमण करने लगे, वही आक्रमण जिसे करके प्रज्ञा ठाकुर, रमेश विधुड़ी, परवेश वर्मा , अनंत कुमार हेगड़े, प्रताप सिम्हा और नलिन कुमार कतील जैसे लोग अपना लोकसभा टिकट कटवा बैठे।
दरअसल लगातार चुनाव जीतता व्यक्ति अगला चुनाव हारने की कल्पना मात्र से ही अवसाद की स्थिति में चला जाता है, हिटलर तो ऐसी स्थिति में खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर चुका है। नरेंद्र मोदी की गिरती भाषा और उनका व्यवहार उन्हें उसी अवसाद की स्थिति में होने का संकेत दे रहा है।
ईश्वर उनको स्वस्थ रखें।
मगर खुद को देश के 140 करोड़ लोगों का प्रधानमंत्री कहने वाले नरेंद्र मोदी द्वारा देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी मुसलमानों पर नाम लेकर सीधे सीधे आक्रमण करना उनके दोहरे मापदंड को दिखाता है और इसके बावजूद मुसलमानों का संयम देखिए, किसी ने उफ़ तक नहीं किया।
देश के मुसलमानों ने रिएक्ट नहीं किया और केवल इसी एक कारण से नरेंद्र मोदी चुनाव हारने जा रहें हैं, लिख लीजिए बचे हुए चुनाव उनके लिए वाटरलू” नहीं एसिडलू साबित होंगे।
संवाद:पिनाकी मोरे