आंखों के सामने ऐसा सबकुछ घटित होते हुए देख कर भी इस समाज के बड़े से बड़े,प्रतिष्ठित लोग भी चुप्पी साधे तमाशबीन साबित रहे है, आखिर क्यों?
विशेष लेख
सब चुप. सबकी आंखों पर पट्टी पड़ी है।
मैंने अपनी ज़िंदगी का एक बडा हिस्सा मुस्लिम बहुल इलाकों में ही गुज़ारा है। इन तमाम मुस्लिम बहुल इलाकों में मुसलमानों को
खुब मनमानी करते देखा, करप्शन करते देखा, वक्फ जायदादों पर कब्जा, मनमानी, नुकसान करते देखा है । मस्जिद मदरसों की कमेटी के लिए गुटबंदी करते देखा, सदर सदर करते देखा है बिरादरी और समाज को आपस में और दूसरों से लड़वाते देखा है ।
पुलिस की दलाली करते देखा है, लाठी तलवार चलते देखा, खूब मुकदमें देखें, फ्लैटों और प्लॉटों पर कब्जा करते देखा, रास्ते और सरकारी ज़मीनो पर कब्जा करते देखा, दुकानदारों से रंगदारी मांगते देखा, गंदगी और कुड़े का अंबार देखा, एक मस्जिद में दो गुटों का दो बार जुमे का नमाज़ देखा, मस्जिद के इमाम, काजी को गुटबाजी करते देखा है, चंदे का कारोबार देखा, लोगों को सूद का कारोबार करते देखा, नशे में डुबे बच्चों और युवाओं का भविष्य बर्बाद होते देखा ।
लेकिन.. काउंसलर/ पार्षद / वार्ड मेम्बर/ सब लोग चुप है। नेता चुप, नगरसेवक, विधायक,एमपी चुप, इमाम चुप, एनजीओ चुप, अख़बार वाले चुप, अख़बार और चैनल में काम करने वाले पत्रकार,छायाकार चुप, जमाती चुप, बिरादरी चुप। तब्लीग़ी चुप, अपनी कियादत वाले चुप, उसकी कियादत वाले चुप, कौम के नकली सदर चुप, मज़ार वाले चुप, हदीस वाले चुप, क़ुरान वाले चुप, फातिहा वाले चुप , चिल्ला वाले चुप, पैसे वाले चुप, डॉ चुप, प्रोफेसर चुप, बिल्डर चुप, डीलर चुप, एक्टीविस्ट चुप, नमाज़ी चुप, हाजी चुप, सबके सब चुप। यहां तक कि पीर परस्ती वाले सब चुप।
इस का कारण सिर्फ़ 1.
मामलात न बिगड़ जाए, रिश्ते न बिगड़ जाएं, दोस्ती में बाधा न हो।कारोबार पर असर न पड़ जाए, विधायक न नाराज़ हो जाए, सदर नाराज, ग़ुस्सा न हो जाए, वकील है तो केस आना बंद न हो जाए, गुंडा बदमाश न पीछे पड़ जाए, दोस्ती न टुट जाए, रिश्तेदारी न बिगड़ जाए, डील न टूट जाए, कॉन्ट्रैक्ट न ख़त्म हो जाए, मंथली न रूक जाए, नौकरी न छुट जाए। बगैरह बगैरह। यानी सिर्फ़ अपने ज़ाती फायदे के लिए सब के सब चुप हैं।
जबकि क़ुरान कहता है कि बंदे तू रोक, गर ताक़त है तो , तू बोल अगर मुंह में ज़ुबान है तो या तू दिल में मान लें कि ग़लत ग़लत है।
लेकिन यही मुस्लिम समाज चाहता है कि औवेसी बौले, केजरीवाल बोले, राहुल बोले, ममता बोले, अखिलेश बोले, लालू बोले, नीतीश बोले, गहलोत बोले, पायलेट बोले। अरे भाई जिस तरह आप अपने चंद फायदों के लिए अपने समाज में हो रहे ज़ुल्म पर चुप रहते हैं, तमाशाबीन रहते हैं वैसे ही यह भी अपने फायदे के लिए चुप रहते हैं।
आपको क्या लगता है कि आपकी पांच सीट के लिए कोई पार्टी, 65 सीटों की कुर्बानी दे दे ? आप क़ुरान की सुनते नहीं जिस वजह से आपके मुहल्ले में गुंडागर्दी होती रहती है और आप चुप रहते हैं लेकिन आप चाहते हैं कि सत्ता वाले अपनी सत्ता का खुद व्हाट लगा दे। जिस तरह आप चुप हैं वैसे ही यह भी चुप रहेंगे। याद रखें।बैलेंस करना सिर्फ़ आप ही नहीं जानते, नेता भी जानते हैं। नेता दोनों हाथ में लड्डू रखते हैं, दुनियादारी सिर्फ़ आप नहीं जानते, नेता भी जानते हैं। आप दुनियादारी छोड़ दें , आप बोलना शुरू करें फिर देखें मुर्दा भी बोल उठेगा।
बात जरा कडवी है मगर हक बात है। दुनिया में सब को नाराज़ कर दो, मगर ख्याल रहे खुदा नाराज ना हो, मगर खुदा नाराज हो गया तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको नहीं बचा सकती ना फायदा नहीं पहुंचा सकती, और अगर खुदा की नाराजगी से बचने के लिए दुनिया वालों को नाराज कर दिया तो इंशाअल्लाह वो लोग आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।
संवाद;राशिद मोहमद खान