भोपाल में कई सुविधाओं के बावजूद चंद गिनती के महज20% लोगों को ही मिल रही एम्स की सुविधाएं,जिम्मेदार कौन?

भोपाल

संवाददाता

धन्यवाद एम्स भोपाल अनेक सुविधा चंद गिनती के 20% लोगों को एम्स की सुविधा मुहैया हो पा रही है

5000 लोग प्रतिदिन यहां पर रजिस्ट्रेशन करवाते हैं हकीकत कुछ और है। रजिस्ट्रेशन 5000 के होते हैं, इलाज डेढ़ सौ लोगों की जांच नहीं हो पा रही है। एक्स-रे डिपार्टमेंट में सारी सच्चाइयां सामने आ गई है। जानबूझकर परमानेंट कर्मचारी लोग की मोनोपोली के कारण एम्स की छवि खराब करके रखा है। एक ग्रह बैठा हुआ है जिसके वजह से जहां पर 1500 लोगों की जाती हो सकती है मगर जानबूझकर 150 एक्स-रे के बाद और लोगों की जांच नहीं करते हैं। जानबूझकर यही सबसे बड़ा षड्यं

त्र है।

जितनी देर में 10 लोगों के एक्स-रे हो सकते हैं उतने ही देर में एक एकल व्यक्ति के ही एक्सरे करते हैं ऐसा बताया जा रहा है डिपार्टमेंट के कुछ लोगों ने। उनकी तानाशाही से एम्स की छवि खराब हो गई है।
किसी विशेष प्रदेश के लोगों का यहां पर एक बहुत बड़ी भारी यूनिटी है। जिसके वजह से वह लोग मनमानी करते हुए स्लो प्रोसेसिंग की कार्रवाई ही करते हैं। टेक्नीशियन की मनमानी बताई जा रही है

दिनांक 2 नवंबर 2023 को काफी गंभीर मरीज लोग परेशान होते रहे। रोजाना सैकड़ो लोग बिगर इलाज और जांच के एम्स से नाराज़ होकर चले जाते हैं। जबकि रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद इसकी जांच होना बहुत जरूरी है।यहां 5000 लोग आते हैं। उनमें से मात्र एक्स-रे 150 लोगों के ही हो पाते हैं। इस पर भी जांच का गंभीरअविलंब विषय को लेट ना किया जाए, उच्च स्तर पर इसकी जांच होनी चाहिए इसमें देरी करने वाले के प्रतिशत से सख्त कार्रवाई हो।

राष्ट्रहित में आवेलाम जांच चाहता है समाज का चौथा स्तंभ एमपी प्रेस क्लब अक्सर यहां की अनेक उपलब्धियां के बारे में धन्यवाद देते आया है। एम्स को सारी सुविधा के लिए हजारों करोड रुपए खर्च करने के बाद में एक स-र के लिए लोगों को यहां वहां दर धर भटकना पड़ रहा है। और कई कई दिन तक लोग बिगर इलाज के एम्स से अब बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं एम्स के परमानेंट कर्मचारी लोग। यह एक अहम जांच का गंभीर विषय है। उच्च स्तर पर महामहिम राष्ट्रपति महोदय से विनती एवं प्रार्थना है कि इसको बड़े स्तर पर जांच होना चाहिए ।क्योंकि देश का सबसे अच्छा बढ़िया ईमानदार कर्मचारी अधिकारी इस अस्पताल में बहुत लंबे समय से बैठे हुए हैं। चाहे वह देरी से आते हैं मगर अच्छा कार्य कर मरीज के बीच हित में विचार रखते हैं और विचार करते हैं। 80% लोग समय से हॉस्पिटल आते हैं और अस्पताल को बहुत अच्छा समय देते हैं। 20% के वजह से एम्स की छवि खराब हो रही है उनके प्रति कोई जांच करने वाला नहीं है।

प्रोफेसर डॉक्टर श्री अजय कुमार सिंह जी ने भोपाल मध्य प्रदेश एम्स की राष्ट्र तक नहीं बल्कि विश्व स्तर पर पहचान बना दी है। यहां पर सुबह 4:00 बजे से जो लाइन लगती थी उन्होंने वह लाइन खत्म कर एक बहुत ही शानदार सुंदर परफॉर्मेंस देने में अपनी टीम के साथ जो कार्य किया है सचमुच में स्मरणीय और तारीफे काबिल है। देश का सबसे अच्छा हॉस्पिटल कहला ने में सबसे ज्यादा प्रोफेसर श्री अजय कुमार सिंह जी का आभार धन्यवाद एमपी प्रेस क्लब करता है। जिनके वजह से एम्स में दिन प्रतिदिन मरीज की संख्या बढ़ रही है। मगर जांच के नाम पर मात्र 20% ही ठीक से जांच हो पाती है। 80% लोग रजिस्ट्रेशन करवा कर इलाज ही नहीं करवा पाते हैं। क्योंकि उनका नंबर ही नहीं लगता है इतने नंबर और इतना लंबा डेट समय दे देते हैं कि डॉक्टर को भी उत्साह नहीं रहता है मरीज के प्रति की कब कौन-कौन सी जांच लिखिए कब आएगा या नहीं आएगा उनको पता ही नहीं होता है। प्राइवेट अस्पताल में और हमारे एम्स में इतना ही फर्क है। जबकि प्राइवेट इलाज वाले अस्पताल में आधा घंटे के अंदर रिजल्ट सामने आ जाता है। नगर यहां पर तो महिनो महीनो पता नहीं चलता है कि मरीजों की बीमारी क्या है? किसको देखना है अति घोर लापरवाही का मामला हैं। जो जांच के नाम पर गुमराह कर गंभीर मरीजों को भगा दिया जाता है। इनडायरेक्ट में लंबे डेट और समय और चक्कर कटवाने के चक्कर में राष्ट्र का सबसे प्रथम हॉस्पिटल बन गया है।

80% लोग बहुत बुरी तरह से परेशान दुखी पीड़ित गंभीर मरीज देश के स्वास्थ्य विभाग से शिकायत करना चाहते हैं कि इतना भारी बड़ा खर्च करने के बाद में मरीजों को 20% ही लाभ हो पा रहा है।
ऑर्थो डिपार्मेंट का पक्षपात वाला रवैया शायद भारत में किसी को पता नहीं है। जातिवाद भी देखा गया है। ऐसा बताया जाता है जो व्यक्ति परमानेंट है शायद वह 20% कार्य कर रहे हैं उनको धन्यवाद देना चाहिए। 80% लोग बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं उनके साथ में भेदभाव जबरदस्त चल रहा है।
ऑर्थो डिपार्मेंट के जूनियर डॉक्टर मरीज से सबसे पहले मिलकर ढेर सारी जांच लिख देते हैं जो एक्स-रे और ब्लड से रिलेटेड होती है

जिस व्यक्ति एक दिन में तो एम्स हॉस्पिटल में कुछ भी काम नहीं होता है इसलिए इन कर्मचारियों के वजह से एम्स की सबसे ज्यादा बुरी हालत खराब गंदी और बुरी छवि हो ती जा रही है।
यही सब चीज प्राइवेट हॉस्पिटल में मात्र आधा घंटे में जांच कंप्लीट पूरी हो जाती है और देश का सबसे महान गर्व करने वाला हॉस्पिटल स्वास्थ्य विभाग की गरिमा खराब कर रहा है। भोपाल में जो जांच के नाम पर कई दिनों तक लोग बाहर के आकर इस प्रांगण में रुकते हैं जिसे जान माल का खतरा के अलावा भी जान जोखिम में डालकर लोग यहां पर स्टे करते रुकते हैं आश्रमों में यह सबसे बड़ा खतरा है। यह एम्स की जिम्मेदारी बनती है कि यहां पर लगभग 200 या 300 लोग बाहर परिश्रम कर रहे हैं एम्स की घोर लापरवाही अव्यवस्था के चलते।

ऑर्थो हड्डी डिपार्टमेंट के डॉक्टर जूनियर 4 में से एक या दो ही बैठते हैं। ओपीडी में पहली शिकायत दूसरी शिकायत जूनियर मरीजों की एक ही बात सुनते हैं । तकलीफ बताओ और आपकी ढेर सारी जांच लिख देते हैं जो यहां पर मशीन उपलब्ध होने के बावजूद भी आपको तारीख इसका मतलब सजा गंभीर मरीजों को दी जा रही है। जो एक दिन में कभी भी नहीं हो पाती है। आपको दूसरे दिन सुबह 8:00 बजे बुलाएंगे। उसमें आपका नंबर डेढ़ सौ के अंदर लग गया तो नसीब की बात है अन्यथा ऐसे ही कई दिनों तक चक्कर काटते रहिए या परेशान होते रहिए। आपको इतनी इजी आपकी जांच जैसे प्राइवेट में आधा घंटे के अंदर जो काम हो जाता है देश का सबसे बेस्ट रक्षा स्वास्थ्य विभाग एम्स वह कभी जीवन में आपको आधा घंटे में कोई भी कार्रवाई नहीं करके दे पाएगा। क्योंकि लापरवाही की वजह से व्यवस्थाएं काफी होने के बावजूद भी वहां पर परमानेंट लोग आपकी नहीं सुनते हैं क्योंकि कई टेक्निकल दिक्कतें की बात कर आपको बाहर का रास्ता दिखाते हैं जिससे एम्स की छवि खराब हो रही है प्रदेश में।

जूनियर डॉक्टर यदि आपको ओपीडी में गलती से मिल भी गया तो एकदम से आपकी जांच नहीं हो पाएगी।आपको 10 नंबर कमरे में जाकर लाइन लगाकर खड़े होना होगा। जब वह लंच से या मीटिंग से या व्यक्तिगत कार्य से फ्री होने के बाद में आपके हड्डी या ब्लड टेस्ट के पर्चे बनाएंगे। रूम नंबर 10 में वह लोग ही नहीं मिलते हैं। एक तो ओपीडी में कंप्लीट डॉक्टर कभी नहीं मिलते हैं। समय पर नहीं आते हैं और जो आते भी हैं वह आपको रिसेप्शन पर बैठे हुए मिल ते हैं।वह आपको यही बताएंगे कि आप रूम नंबर 10 में जाकर डॉक्टर ने जो जाच लिखी है आप वहां से लिखवा लीजिए। अभी वह नहीं है, टॉयलेट गए होंगे ,या लंच पर गए होंगे। लंच का कोई टाइम नहीं है। कब आना है और कब जाना है ।परमानेंट कर्मचारियों को कोई एम्स में बोलने चलने वाला तक मौजूद नहीं है। अंधा पीछे कुत्ता खाए ऐसा हिसाब किताब एम्स भोपाल मध्य प्रदेश में चल रहा है।

बहुत ही जल्दी देश के महामहिम के सच्ची महोदय एवं स्वास्थ्य विभाग के आयुक्त महोदय ,कमिश्नर महोदय ,और केंद्रीय हेल्थ मिनिस्टर से निवेदन है कि अविलंब के लिए भोपाल मध्य प्रदेश एम्स की सख्ती से जांच होनी चाहिए क्योंकि यहां पर भरपूर सुविधा होने के बावजूद भी मध्य प्रदेश के गंभीर मरीजों को समय पर ठीक ढंग से व्यवस्थाएं पूरी नहीं हो पा रही है।

बहुत ही गर्व की बात है कि हमारे यहां पर 80% बहुत ही बढ़िया अच्छे डॉक्टर उपलब्ध है। साथ ही उनके बीच में 20% ऐसे लोग हैं जो सचमुच में लापरवाही कर एम्स की छवि खराब कर रहे हैं और मरिज खामोश होकर लंबा इंतजार करवा कर भी यहां के अच्छे डॉक्टर से अपना इलाज करवाना चाहते हैं। मगर जांच के लिए कई कई दिनों तक मरीजों को चक्कर काटने पड़ते हैं। सेम डे उसी दिन लगभग 30 मिनट के अंदर गंभीर बीमारी के मरीजों का ट्रीटमेंट होना चाहिए जो प्राइवेट के अंदर देखा जा रहा है। उसे काफी ज्यादा खराब हालत एम्स जो भारत का गौरव है उसकी बना रखी है। हमारे कर्मचारियों की या इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी?

मध्य प्रदेश लगभग 8 करोड़ की आबादी वाला प्रदेश है जिसमें 1000 एक्सरे प्रतिदिन की आवश्यकता हो रही है मगर जानबूझकर राजेश मलिक ने 150 एक्स-रे की ही व्यवस्था बनाकर लोगों को गुमराह कर बाहर से एक्सरे करवाने के लिए मजबूर कर दिया गया है। ऐसा बताया जा रहा है। यह भी एक गंभीर जांच का संज्ञान लेने वाला बड़ा विषय है।

एम्स में बहुत बड़ा भारी षड्यंत्र चल रहा है एक्स-रे डिपार्मेंट और जांच के नाम पर मरीजों के साथ जो पक्षपात भेदभाव और चक्कर कटवाने का कार्य चल रहा है जिस से हमारा भारत का गौरव अखिल भारतीय आयुर्वेद ज्ञान संस्थान एम्स की जो छवि खराब हो रही हैं। कर्मचारियों के प्रति उच्च स्तर की अविलंब पारदर्शिता के साथ जांच कर दोषियों के प्रति सख्त सख्त कार्रवाई करने की मांग कर रहा है। मध्य प्रदेश एमपी प्रेस क्लब द्वारा इस विषय को बहुत ही बारीकी से इस लापरवाही को पकड़ा गया है। इसमें बहुत बड़ा फर्जीवाड़ा एवं भ्रष्टाचार सामने जल्द आने वाला है।

साभार; विनोद कुमार सूर्यवंशी

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