करोना रोकथाम के लिए महज लॉक डाउन की बातेंव्यापारियों की व्यथा को कोई नही समझ पा रहा है न शासन न प्रशासन?

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रिपोर्टर:-

व्यापारी भाईयो की व्यथा से अवगत कराना चाहूंगा कि पिछले वर्ष हमने सरकार को हर मुद्दे पर सहयोग किया।
78 दिन के लंबे लॉकडाउन को भी हमने निभाया, हमारे संपूर्ण प्रतिष्ठान बंद होने के बावजूद हमने दुकानों के किराए भरे, बिजली बिल अदा किए, नगर निगम टैक्स भरे,जीसटी भरी,बैंक की किश्ते भरी,हमारे अधीनस्थ कर्मचारियों के परिवार भूखे न रहे इसलिए हमने कर्ज लेकर भी उन्हें आर्थिक सहारा दिया किंतु सरकार ने हमें क्या दिया?
दुकाने चालू होने पर P1-P2 में पेनल्टी, मास्क नही तो पेनल्टी,सोशल डिस्टेन्सींग नही तो पेनल्टी,सेनेटाइजर नही तो पेनल्टी, प्रशासन द्वारा एहतियात की सख्ती के नाम पर सिर्फ और सिर्फ वसूली का ही धंधा किया?

और हमने लॉकडाउन की गहरी मार झेलने के बाद भी सेवाभावी संस्थाओं के माध्यम से दिन रात मेहनत कर कोरोना की भयावहता को नजरअंदाज कर जान की परवाह न करते हुए जरूरतमंदों को तीनो समय का भोजन मुहैया करवाया।
फिर भी हमे ही कसूरवार ठहराते हुए बार-बार दंडित किया गया।
जो सरकारी अधिकारी, कर्मचारी पैसे वसूलने में मस्त थे उन्हें ये भी समझ नही आ रहा था कि इतने बड़े लॉकडाउन के बाद व्यापारियों की हालत क्या है?

दंडित करने आये कर्मचारियों से बात करने पर बड़े अधिकारियों का वास्ता देकर लूट खसोट मचा रहे थे ये।
देश,शहर,गांव-कस्बे में कोई भी भूखा न रहे ये सरकार की जवाबदारी होती है।
सरकार को उनअधिकारियों व कर्मचारियों की एक-दो माह की पगार न देकर गरीब व जरूरतमंद लोगों के लिए अनाज व भोजन पानी की व्यवस्था करनी चाहिये थी।

मगर हुआ उसका ठीक उल्टा, बेचारे व्यापारी भाईयों ने 78 दिनों के लॉकडाउन में व्यापार बंद होते हुये भी जरूरतमंद लोगों को सहयोग किया पर बदले में उन्हें क्या मिला और आज उन्हें क्या मिल रहा है?
वही अधिकारी,कर्मचारी अपना वेतन लेकर व्यापारियों के चालान फाड़ते फिर रहे हैैं, केस बनाते फिर रहे हैैं?
जैसे कि कोरोना केवल व्यापारी समुदाय से ही आ रहा है और अब फिर से कर्फ्यू ,लॉकडाउन एवं नये नये प्रतिबंधों से व्यापार का मटियामेट होता दिख रहा है।

व्यापारी और उनके यहां काम करने वाले कर्मचारी कोरोना से तो नही मरेंगे पर डिप्रैशन से जरूर मर जायेंगे,एक बात ध्यान में रखना कि व्यापारी-बंधु बहुत ही सहनशीलता दिखा रहे है,
इसे उनकी कमजोरी न समझो।

जब एकजुट होकर मैदान में उतरेंगे तब ऐसा भूचाल आएगा कि शासन – प्रशासन का सिंहासन डोलने लगेगा!
व्यापारी बंधुओ की ये व्यथा मैसेज द्वारा अधिक से अधिक भेजे ताकि ऊपर तक बैठे शासन प्रशासन के कानों तक पहुचे और वह व्यापारियों की व्यथा को समझ कर कोई हल निकालें।

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