जानिए किस लिए शहंशाह बाबर के खानदान को मुगल और सल्तनत को सल्तनत ए मुगलिया के नाम से पुकारा गया?

विशेष
संवाददाता

14 फरवरी वेलेंटाइन डे नहीं बल्कि #बाब रडे۰ है।

बर्रे सग़ीर पाक व हिन्द में मुग़ल۰ सल्तनत के बानी ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर थे । बाबर का शजरए नसब बाप की तरफ़ से अमीर तैमूर गोरगाँ से मिलता था और वालिदा की तरफ़ से बाबर का तअल्लुक़ चंगेज़ ख़ाँ से था । बाबर ने खुद को हमेशा तैमूरी कहा और मंगोलों से अपने तअल्लुक़ को बाइसे आर समझते थे , मगर अहले हिन्द शुमाल व मग़रिब से आने वालों को मुग़ल या मंगोल कहते थे । इसलिए बाबर के खानदान को मुग़ल और सलतनत को सल्तनतें मुगलिया के नाम से पुकारा गया ।

ज़हीरुद्दीन बाबर ने सिर्फ बारह हज़ार के लश्कर से
हिन्द पर हमला किया , इनका मुक़ाबला अफ़ग़ान शहनशाहे हिन्द इब्राहीम लोधी से पानीपत के मेदान में हुआ ।
बताते हैं कि अफ़ग़ान लश्कर एक लाख से ज्यादा था , मगर बाबर एक तजरबाकार जरनैल थे। फिर उनके साथ तोप ख़ाना भी था जिसकी हलाकत खेज़ी से अहले हिन्द उस वक्त तक वाक़िफ़ न थे , चुनांचे 1526 ई0 को पानीपत में लड़ी जाने वाली पहली जंग में ज़हीरुद्दीन बाबर फ़ातेह हुए और इब्राहीम लोधी मैदाने जंग में लड़ते हुए मारे गए।

इस तरह हिन्द की शहनशाहियत का ताज इब्राहीम लोधी से ज़हीरुद्दीन बाबर के सर पर आ गया । बाबर ने 26 दिसम्बर 1526 ई 0 को अपने सर पर हिन्द की शहनशाहियत का ताज रखा था , मगर सिर्फ़ चार साल बाद उसी तरीख़ को यानी 26 दिसम्बर 1530 ई 0 को मौत ने ये ताज उनके सर से छीन लिया ।

बाबर की शख़्सियत बड़ी दिल आवेज़ और दिलचस्प थी। एक तरफ़ तो वह एक तजरबाकार जरनैल थे। दूसरी तरफ़ वह मनाज़िरे क़ुदरत के दिलदादा , शेअर व सुख़न के शायक , यारों के यार थे । अपनी हर फ़तह को मिन-जानिबिल्लाह कहत थे ।
एक तुर्की ज़बान में “दीवान और तुके बाबरी” उनकी तसानीफ़ हैं वह मज़हबी रवादारी के क़ायल थे । उन्होंने हिन्द में राजपूतों की ताक़त को जंगे खा़नवा में ख़त्म कर के रख दिया,

संवाद;मोहमद अफजल इलाहाबाद

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