पिछली दफा नोट बंदी का फैसला मोदी द्वारा किस मकसद से लिया गया था?

संवाददाता

अब यह स्पष्ट हो चुका है कि मोदी ने नोटबंदी का कदम किसी वित्तीय सुधार के लिये नहीं उठाया था बल्कि विपक्ष को धनहीन करके बलहीन करने की भावना इसमें मुख्य रूप से निहित थी।

इसलिये काले धन पर प्रहार, आतंकवादियों के वित्त पोषण पर चोट या जाली नोट के चलन को रोकने आदि नोटबंदी के जो उद्देश्य गिनाये गये थे उनमें से एक भी इसके कारण फलीभूत नजर नहीं आ सका।

कहा जाता है कि भाजपा ने तो दो हजार के अपने नोट बदलने का इंतजाम पहले ही खूब कर लिया था जिसके बाद नोटबंदी की घोषणा कर दी गई। लेकिन अन्य पार्टियों को दो-दो हजार के नोटो में एकत्र अपने अघोषित कोष को सही ठिकाने लगाने का पूरा अवसर नहीं मिला। अगर उसने नोट बदल भी पाये तो दलालों को कमीशन देने में वह बुरी तरह चूंक गयीं। इसके साथ राजनीतिक उद्देश्यों के लिये उठाये गये इस खब्ती कदम से आम लोगों को जिन गम्भीर समस्याओं से दो-चार होना पड़ा वे अगर इससे कोई फायदा मिला भी हो तो नगण्य हैं।

अब यह बात छुपी नहीं रह गयी है कि जहां भी चुनाव आने वाले होते हैं उन राज्यों में प्रतिपक्षी नेताओं और उनके फाइनेंसरों पर ईडी, इनकम टैक्स के छापे पड़ने शुरू हो जाते है। ताकि उनके रुपिये की सप्लाई लाइन काटी जा सके। इसमें मोदी सरकार का हरामीपन साफ उजागर होता है। क्या कोई पार्टी यह दावा कर सकती है कि उसके सारे लोग राजा हरिश्चंद्र के अवतार हैं ?फिर इन 10 साल में भाजपा का कोई नेता मनि लोंड्रिंग में क्यों नहीं फंस सका? यहां तक कि अगर दूसरी पार्टी से घोटाले में लिप्त कोई नेता उसके पाले में आ गया तो ईडी और आयकर विभाग उसके दरवाजे पर नहीं आते!

संवाद;पिनाकी मोरे

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