बहुमत को लेकर अब खुल रही है परतें कि क्यों किया गया ऐसा?
विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो
संसदीय प्रणाली में प्रधानमंत्री वही हो सकता है, जो लोकसभा मे बहुमत प्राप्त दल के संसदीय दल का नेता हो।
जबकि इसबार नरेंद्र मोदी को भाजपा के चुने हुए सांसदों ने अपने संसदीय दल का नेता तो चुना ही नहीं। अत: लीगली यह सरकार पूरी तरह अवैध है, साथ ही राष्ट्रपति ने भी चली आ रही इस परिपाठी का पालन नही किया कि यह सरकार लोकसभा में अमुक दिनों में अपना बहुमत सिद्ध करे।
अब खुल रहीं परतें कि आखिर क्यों किया गया ऐसा?
दैनिक भास्कर के पोलिटिकल एडिटर केपी मलिक का कहना है कि…
“दरअसल संघ चाहता था कि मोदी के अलावा भाजपा का कोई और नेता प्रधानमंत्री बने। इसके लिए भाजपा संसदीय दल की बैठक में किसी और को नेता चुनने की योजना बनाई गई थी।
मोदी-शाह ने बड़ी चाल
चलते हुए भाजपा संसदीय दल की बैठक ही नहीं होने दी। उन्होंने सीधे एनडीए की ही बैठक बुला ली, उसमें भी भाजपा सांसदों के अलावा पार्टी के मुख्यमंत्री और अन्य नेता घुसा दिए गए।
मोदी ने अपने आप को नेता चुनने का प्रस्ताव पास करवा लिया। परंतु भाजपा के सांसदों ने उन्हें अपना नेता वास्तव में चुना या नहीं ये किसी को पता नहीं चला।
साल 2014, 2019 में मोदी भाजपा के संसदीय दल के नेता चुने गए थे एनडीए के नहीं!
इस बार ऐसा क्यों नहीं हुआ?राजनीतिक दल केवल अपने-अपने संसदीय दलों के नेता ही चुन सकते हैं, और दूसरी पार्टी को केवल समर्थन दे सकते हैं, जबकि यहाँ एनडीए नेताओं के अलावा सूबों के मुख्यमंत्री भी शामिल थे।
साभार
विश्वजीत सिंह,
पिनाकी मोरे