मुसलमानों के मौजूदा दौर में हालात इस तरह है;फ्रेंच पत्रकार फ्रांसिस गिटर की एक रिपोर्ट
संवाददाता
बहुत ही गौरो फिक्र की बात है
फ्रेंच पत्रकार फ्रांसिस गिटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक मुसलमानों के हालात मौजूदा दौर में कुछ इस तरह हैं:–
1. दिल्ली में 150 शौचालयों के लिए लगभग 1325 सफाई कर्मचारी हैं, जिनमें से आधे से अधिक मुस्लिम समुदाय से हैं।
2. दिल्ली और मुंबई में 50% रिक्शा चालक मुस्लिम हैं। इनमें से ज्यादातर नाई, बुनकर, पठान, सिद्दीकी, शेख होते हैं, जो पूर्वांचल और बिहार के मुस्लिम होते हैं।
3. पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में मुस्लिमों की स्थिति छुआछूत जैसी है। कई जगहों पर 70% रसोइए और घरेलू कामगार मुस्लिम होते हैं।
4. मुसलमानों की प्रति व्यक्ति आय दलितों से भी कम है। चिंता की बात यह है कि 1991 की जनगणना से लेकर अब तक दलितों की प्रति व्यक्ति आय में सुधार हुआ है, जबकि मुस्लिमों की आय में गिरावट आई है।
5. मुस्लिम भारत में दूसरा सबसे बड़ा कृषक समुदाय हैं, लेकिन उनकी कृषि तकनीकें 40 साल पीछे हैं। मुस्लिम होने के कारण इन किसानों को सरकार से उचित मुआवजा, ऋण या अन्य सुविधाएं नहीं मिलतीं। कम आय के कारण अधिकांश मुस्लिम किसानों को अपनी ज़मीन बेचनी पड़ती है।
6. मुस्लिम छात्रों में ड्रॉपआउट दर अब भारत में सबसे अधिक है। 2001 में मुस्लिमों ने इस मामले में दलितों को पीछे छोड़ दिया और तब से यह दर सबसे ऊपर बनी हुई है।
7. मुसलमानों में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है। समय पर नौकरी/रोजगार न मिलने के कारण 14% मुस्लिम हर दशक में विवाह से वंचित रह जाते हैं। यह दर भारत में किसी भी समुदाय में सबसे अधिक है, और मुस्लिम जनसंख्या में गिरावट का यह एक प्रमुख कारण है।
8. आंध्र प्रदेश में बड़ी संख्या में मुस्लिम परिवार 500 रुपये प्रति माह और तमिलनाडु में 300 रुपये प्रति माह पर गुजारा कर रहे हैं। इसका मुख्य कारण बेरोजगारी और गरीबी है। इन परिवारों में भूख से मरना अब आम हो गया है।
9. भारत में ईसाई समुदाय की प्रति व्यक्ति आय लगभग 1600 रुपये, अनुसूचित जाति/जनजाति की 800 रुपये, ओबीसी की 750 रुपये है, जबकि मुस्लिम समुदाय में यह आंकड़ा केवल 537 रुपये है और लगातार गिर रहा है।
10. मुस्लिम युवाओं के पास रोजगार न होना और संपत्ति की कमी के कारण अधिकांश मुस्लिम लड़कियां “लव जिहाद” का शिकार हो रही हैं।
11. उपरोक्त आंकड़े बताते हैं कि आने वाले दशकों में मुस्लिम समुदाय का ऐसा अंत होगा। सोशल मीडिया पर मुसलमानों के खिलाफ फैलाया जा रहा अंधा नफरत और गलत जानकारी नई पीढ़ी का ब्रेनवॉश कर रही है, और इससे उनका भविष्य खतरे में है।
मुसलमानों के सामने सात महत्वपूर्ण सवाल:
1. मुस्लिम एकजुट कैसे और कब होंगे?
2. मुसलमान एक-दूसरे की मदद कब करेंगे?
3. मुस्लिम संगठनों में एकता कैसे आएगी?
4. मुस्लिम एक साथ एक ही जगह पर मतदान कब करेंगे?
5. उच्च पदों पर बैठे अधिकारी, मुस्लिम मंत्री, सांसद, विधायक स्वार्थ से ऊपर उठकर मुस्लिमों की बिना शर्त मदद कब करेंगे?
6. गरीब मुस्लिमों की मदद के लिए मुस्लिम महासंकल्प कब बनेगा?
7. भारत में 300 मिलियन से अधिक मुस्लिम हैं। अगर हर मुस्लिम प्रति माह 10 रुपये भी महासंकल्प में योगदान दे, तो प्रति माह 300 करोड़ रुपये जमा हो सकते हैं।
इस फंड से प्रत्येक गरीब मुस्लिम को स्व-रोजगार दिया जा सकता है, गरीब मुस्लिम बच्चों की शादी करवाई जा सकती है, और मुस्लिमों के लिए मुफ्त स्कूल और कॉलेज खोले जा सकते हैं।
अगर आप वास्तव में मुस्लिमों का उत्थान चाहते हैं, तो इस पर विश्वास करें, इसे पढ़ें, और कम से कम 10 मुसलमानों को इसे भेजें।
संवाद; राशिद मोहमद खान